Dhuniwaley Dadaji | Guru Purnima Mahotsav 2016 | Dadaji Mandir Khandwa |
!! Dhuniwaley Dadaji !!
श्री दादाजी धूनीवाले
श्री केशवानंदजी, जिन्हे श्री दादाजी धूनीवाले महाराज के रूप में भी जाना जाता है, भारत के सबसे बड़े संतों में से एक है। कोई नहीं जानता कि दादाजी का जन्म कब और कहाँ हुआ, महाराज श्री गौरी शंकर जी ने नर्मदा नदी के तट पर उन्हें ७-८ साल के बच्चे के रूप में देखा था। १९ वीं और २० वीं सदी में उन्होंने भारत भर में यात्रा की विशेष रूप से भारत के मध्य भाग में । दादाजी महाराज हमेशा एक 'डंडा' (छड़ी) साथ रखते, वह जहाँ भी जाते थे अपनी 'धुनी' (पवित्र अग्नि) जलाते और उसके बगल में बैठते । शब्द "धुनी" हिंदू संत द्वारा जलाई पवित्र अग्नि को कहते है। दुनिया भर के लाखो भक्तों को जिन्हे दादाजी की सेवा करने का सम्मान मिला उनका दादाजी महाराज को भगवान शिव का अवतार होने का दृढ़ विश्वास है। आज भी इन भक्तों की सन्तान पूरी भावना से अपने दादा दादी द्वारा किए गए इन द्रष्टव्य को याद करते हैं। दादाजी के लीलाओ और चमत्कार से लोगों की एक बड़ी मण्डली ने उनका अनुसरण करना शुरू कर दिया। दुनिया भर से लोग उनका आशीर्वाद लेने के लिए हजारों की संख्या में आते थे।
दादाजी महाराज का 'जन कल्याण' करने का एक बहुत ही अनोखा तरीका था, उन्हें जब भी आशीर्वाद देना होता तब वो लोगो की कटु शब्दों में आलोचना करते और उनकी छड़ी से उन्हें मारते थे। हर कोई इसके लिए कामना करता, क्यूंकि केवल भाग्यशाली लोगों के साथ ही ये व्यव्हार या उनके द्वारा छड़ी का आशीर्वाद दिए जाने का सम्मान मिलता था।
वह हमेशा ("धुनी") पवित्र अग्नि के पास बैठते थे इस वजह से उन्हे "दादा धूनीवाले 'के रूप में याद किया जाता है। दादाजी की भगवान शिव के अवतार के रूप में पूजा की जाति थी। उन्होनें १९३० में खंडवा में समाधि ली और आज भी उनकी याद में एक पवित्र अग्नि के रूप में “धुनी”, वहाँ जल रही है।
शिव के अवतार के रूप में दादाजी धुनी वाले
कई महान संतो ने इस देश में जन्म लिया और इस मिटटी ने उनके दिव्य कंपन को स्वयं मे शामिल किया। जमात वाले बाबा गौरीशंकर महाराज भी एक ऐसे महान संत थे। १८ वीं सदी में, श्री गौरीशंकर जी महाराज के नेतृत्व में 'साधुओं की एक टोली ' नर्मदा नदी की 'परिक्रमा' करती थी। श्री गौरीशंकर जी महाराज एक महान तपस्वी थे उन्होंने एक बार माँ नर्मदा से अपने 'पिता जी' (भगवान शिव) के साक्षात दर्शन की प्रार्थना की। जैसे ही उन्होनें १२ ' परिक्रमा' समाप्त किये 'मां' नर्मदा उन्हें दिखाई दी और उनसे कहा कि उनकी जमात में एक किशोर ‘सन्यासी'' (दादाजी महाराज), स्वयं भगवान शिव है! उनकी आजीवन इच्छा सच होने के साथ, गौरीशंकरजी दादाजी महाराज को देखने के लिए गए, वहा ७-८ साल का एक छोटा सा बच्चा था, और उसे उन्होनें साक्षात भगवान शिव के रूप में देखा। उन्हे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ, तब भगवान शिव ने गौरी शंकर जी को उसे छूने के लिए कहा और इस प्रकार दादाजी महाराज को शिव के अवतार के रूप में देखा जाने लगा।
कुछ लोगों का कहना है की दादाजी ७-८ साल के बच्चे के रूप में अवतरित नहीं हुए बल्कि उनका जन्म इस धरती पर स्वाभाविक रूप से ही हुआ था। ऐसी ही कई और प्रसिद्ध कहानियाँ दादाजी के जन्म के बारे में कही गयी है। अलावा एक और सिद्धांत है कि वह मध्य प्रदेश राज्य के होशंगाबाद जिल्हे में पैदा हुए थे, पर आज इन सभी कहानियों के लिए ऐसा कोई सबूत नहीं हैं।
छोटे दादाजी महाराज
छोटे दादाजी महाराज साइंखेड़ा में दादाजी महाराज के साथ शामिल हो गए और १९३० में दादाजी के समाधी लेने के बाद उन्होंने उनका दायित्व संभाला। बड़े दादाजी महाराज की तरह छोटे दादाजी में भी दिव्य शक्तियाँ थी। शुरुवात में बड़े दादाजी के भक्तों के लिए अपने दिव्य उत्तराधिकारी के रूप में छोटे दादाजी को स्वीकार कर पाना थोड़ा कठिन था। जब श्री हरिहरानंदजी(छोटे दादाजी) ने भगवान विष्णु के 'रूप' में 'दर्शन' दिये, तब भक्तों ने उनमें देवत्व की उपस्थिति महसूस कि और उन्हें उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार किया।
श्री छोटे दादाजी का 'जन कल्याण' करने का एक बहुत ही शांत और निर्मल रास्ता था। १९३० में श्री बड़े दादाजी के खंडवा में महासमाधि लेने के बाद छोटे दादाजी ने "दादा दरबार" की स्थापना की वो वहा दादाजी की समाधि की सेवा करते थे, और इस तरह 'दरबार परंपरा' की शुरुवात हुई। उन्होंने 'दरबार' के लिए नियमों, विनियमों और अनुष्ठानों की स्थापना की। इसके अलावा उन्होंने एक गौशाला की स्थापना की, त्योहारों को शुरू किया और आम जनता के लिए नि: शुल्क भोजन (भंडारा) की भी स्थापना की।
वर्ष १९४२ में श्री हरिहरानंदजी महाराज ने इलाहाबाद के 'महाकुंभ मेले' में 'महासमाधि' ले लि। उनका सबसे प्रिय शिष्य श्री इंदौर सरकार (राम दयाल जी महाराज) और अन्य भक्तों ने उन्हें खंडवा लाया, जहा श्री बड़े दादाजी की 'समाधि' के बगल में उनकी 'समाधि' बनायीं गयी।
!! दादाजी दरबार खण्डवा में श्री गुरुपूर्णिमा दिनांक 19 जुलाई 2016 को मनाई जायेगी। !!
Shri Shri 1008 Shri Dadaji Dhuniwaley (Shri Keshavanandji Maharaj) is one of the greatest saints of India. Also known as Shri Dadaji Dandeywaley, he roamed all over India and in particular the central part of India in the 19th and 20th centuries. DADA JI Image